Saturday, March 22, 2008

हिन्दी मात्र बोली रह गई यानि जिसको हिन्दी बोलना आता है और जो हिन्दी समझ लेता है वह देश और दुनिया में बसे 70 करोड़ हिन्दी भाषियों का भगवान हो गया।

श्री प्रह्लाद बी ५८/१४९ गुरुनानाक्पुरा लक्ष्मी नगर डेल्ही भारत ११००९९२ दूरभाष +९१९९११०९९७३७
िन्दी ने इंटरनेट पर जिस गति से अपनी जगह बनाई है वह चौंकाने वाली है। इस बात में कोई शक नहीं कि हिन्दी अख़बारों और हिन्दी टीवी चैनलों से लेकर हिन्दी फिल्मों ने हिन्दी को स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। लेकिन इसके साथ ही हिन्दी को बाजार की भाषा बनाने के नाम पर उसके साथ शर्मनाक दुराचार भी किया है। इसका कारण यह है कि अंग्रेजी स्कूलों में अंग्रेजी माहौल में पले-बढ़े लोगों ने अपनी एमबीए और मास कम्युनिकेशन की डिग्रियों के बल पर मीडिया, कॉर्पोरेट और सैटेलाईट चैनलों की महत्वपूर्ण जगहों पर कब्जा कर लिया। यहाँ आने के बाद भाषा की शिष्टता, उसकी शुध्दता और भाषाई सौंदर्य का उनके लिए कोई मतलब नहीं रहा। हिन्दी मात्र बोली रह गई यानि जिसको हिन्दी बोलना आता है और जो हिन्दी समझ लेता है वह देश और दुनिया में बसे 70 करोड़ हिन्दी भाषियों का भगवान हो गया। हिन्दी लिखना या पढ़ना आना कोई योग्यता नहीं रही।

इसका परिणाम यह हुआ कि हिन्दी को भ्रष्ट तरीके से लोगों पर थोपा जा रहा है। टीवी पर ख़बर देने वाला हो, या टीवी पर खबर पढ़ने वाला दोनों को अगर हिन्दी का कोई शब्द नहीं सूझता तो वह फट से अंग्रेजी का शब्द बोलकर अपनी खबर को परोस देता है। भले ही उस अंग्रेजी शब्द से अर्थ का अनर्थ हो जाता हो। विज्ञापनों की दुनिया में बैठे लोगों का भी यही हाल है, हिन्दी विज्ञापनों पर अंतिम फैसला वो लोग करते हैं जो न हिन्दी पढ़ सकते हैं न लिख सकते हैं। बस सुनकर अगर उनको मजा आ जाए तो उस विज्ञापन को हरी झंडी मिल जाती है और करोड़ों रुपये खर्च कर उसको बाज़ार में चला दिया जाता है। मगर हिन्दी की शुध्दता के नाम पर कुछ हजार रुपये तक नहीं खर्च किए जाते हैं।

हिन्दी शब्दों को जिस आज़ादी के साथ तोड़-मरोड़कर पेश किया जाता है ऐसा धृष्टता अंग्रेजी शब्दों को लेकर कतई नहीं की जाती क्योंकि तब हिन्दुस्तानी अंग्रेज ऐसी विज्ञापन एजेंसी, टीवी चैनल या खबर पढ़ने वाले से लेकर खबर देने वाले तक के अंग्रेजी ज्ञान का उपहास उड़ा सकते हैं, लेकिन हिन्दी को भ्रष्ट करके लिखा और बोला जाए तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि अगर किसी ने हिन्दी में कुछ गलत लिखा है या बोला है तो उसे कहने वाला कौन... ? हिन्दी अखबार तो और आगे जाकर हिन्दी के शब्दों की बखिया उधेड़ने में लगे हैं। न्यूज़ चैनल वाले तो बिचारे हिन्दी जानते ही नहीं, और हिन्दी अखबारों में भी वो लोग काम करने आऩे लगे हैं जिनको चैनल का रिपोर्टर बनना है।

लेकिन इस अंधरे में रोशनी पैदा की है इंटरनेट के विस्तार ने। दुनिया भर में फैले हमारे हिन्दी प्रेमी साथियों ने अपनी जिंदगी की जद्दोजहद को जारी रखते हुए, नौकरी और परिवार के लिए अपना समय देने के साथ ही हिन्दी को बचाने की एक ऐसी सार्थक पहल शुरु की है जिससे लगता है कि चैनल और अखबार वालों को बहुत जल्दी अपनी हिन्दी सुधारना पड़ेगी, अगर नहीं सुधारी तो इंटरनेट की हिन्दी जमात उनको इस बात के लिए मजबूर कर देगी।

हम इस यात्रा को और विस्तार देते हुए दुनिया भर में फैले हिन्दी प्रेमी साथियों से आग्रह करते हैं कि वे अपने आसपास की घटनाएं, अपने संस्मरण, अपने स्कूल के दिनों की यादें, अपने बचपन के दोस्तों, शिक्षकों, बचपन में नाना-नानी या दादा-दादी के घर की मस्ती भरी जिंदगी, गाँवों की जिंदगी, घर में मनाए जाने वाले वार त्यौहारों, पारिवारिक परंपराओं, घर के बुज़ुर्गों के साथ बिताए अपने यादगार दिनों, अपनी किसी यादगार यात्रा, धार्मिक या पर्यटन स्थल या अपनी पसंद के किसी भी विषय पर लिखें। हम आपमें से ही पाठकों की राय के आधार पर श्रेष्ठतम प्रविष्ठी को पुरस्कृत करेंगे।

इस प्रतियोगिता को आयोजित करने का सबसे अहम मकसद है कॉर्पोरेट जगत और सैटेलाईट चैनलों के लोगों को यह अहसास कराना कि इस देश के कोने-कोने में हिन्दी लिखने वाले और हिन्दी में सोचने वाले लोग बैठे हैं, उनकी सोच जमीन से जुड़ी है और उसके अंदर भाषा की महक भी है। लेकिन दुर्भाग्य से अपने कमजोर अंग्रेजी ज्ञान की वजह से उनकी शुध्द हिन्दी और मौलिक सोच अंग्रेजी के घुटन भरे माहोल में पुष्पित-पल्लवित नहीं हो पाती।

इंटरनेट की दुनिया में आने वाला कल हिन्दी वालों का होगा। क्योंकि अब समय आ गया है कि अगर किसी को हिन्दुस्तान में कारोबार करना है अपना माल बेचना है और 70-80 करोड़ लोगों तक सीधे पहुँचना है तो उसे हिन्दी में ही अपनी बात कहना होगी। देश में और दुनिया में कहीं भी कारोबार करने वाली हर कंपनी को अपनी वेब साईट हिन्दी में बनाना होगी और इसके लिए हजारों लाखों हिन्दी लिखने वालों की जरुरत होगी। ये हिन्दी लिखने वाले अमरीका, जापान, रुस या चीन से नहीं आएंगे, यह काम आपको ही करना होगा। बहुत जल्दी ही वह समय आएगा जब देश के कोने-कोने में छोटे से छोटे गाँव में बैठे हर हिन्दी भाषी को घर बैठे लिखने का काम मिलेगा और पैसा भी मिलेगा।

आज तो हालात यह है कि जिन मोबाईल कंपनियों और बैंकों को आप करोड़ों रुपये दे रहे हैं उनकी वेब साईट तक हिन्दी में नहीं है। आपको अगर अपने मोबाईल या बैंक की सेवा को लेकर कोई शिकायत करना है तो आप अपनी भाषा में नहीं कर सकते। लेकिन जब आपको मोबाईल बेचा जाता है तो आपको तमाम प्रचार सामग्री हिन्दी में दी जाती है। अगर आप आज ही जाग जाएं तो वह दिन दूर नहीं कि देश की मोबाईल कंपनियों और बैंकों को अपनी वेब साईट हिन्दी में बनाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। और अगर वेब साईटें हिन्दी में बनेगी तो लिखेगा कौन...जाहिर है यह मौका अपको ही मिलेगा....तो हम चाहते हैं कि आप अभी से जागें और इंटरनेट पर हिन्दी में लिखना शुरु करें। हमारे लिए नहीं बल्कि अपने आपके लिए, आपका लिखने का शौक आपके लिए नौकरी का और पैसा कमाने का जरिया हो जाएगा। और जल्दी ही वह दिन भी आएगा जब नौकरी मिलने की योग्यता अंग्रेजी नहीं बल्कि हिन्दी हो जाएगी।

तो तैयार हो जाईये अगर आपके पास कंप्यूटर नहीं है तो किसी साईबर कैफे पर जाईये और हिन्दी लिखने की शुरुआत कीजिए-और अपने साथ अपने किसी साथी को भी ले जाईये ताकि एक साथ दो लोग हिन्दी लिखने के लिए तैयार हो सकें। हमारे लिए आपका लिखा हुए एक-एक शब्द कीमती है।

1 Comments:

Blogger Ila said...

प्रह्लाद जी, आपके विचार बहुत अच्छे हैं । लेकिन,कुछ भाषा की अशुद्दियाँ - जिसे टाइपिंग की भूल कहेंगे - आपके लेखन में भी रह गई हैं। उन्हें ठीक कर लें ।
आपके ब्लाग का पता अपने तमाम मित्रों को भेज रही हूँ। मैं जानती हूँ कि इस महायज्ञ में हम सब आपके साथ हैं।
इला

9:28 AM  

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